इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है कि इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला, पैदा करने वाला, और उसका प्रबन्ध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है। वह अपने अस्तित्व (ज़ात) और गुणों मे अकेला है। संसार को बनाने, चलाने, मारने, जिलाने मे उसका कोई साझी नहीं। वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है, हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है। समस्त संसार में एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता। हर मनुष्य की आत्मा की आत्मा इसकी गवाही देती है चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो और चाहे मुर्ति पूजा करता हो मगर अन्दर से वह यह विश्वास रखता है कि पालनहार, रब और असली मालिक केवल वही एक है।
मनुष्य की बुद्धि में भी इसके अतिरिक्त कोई बात नहीं आती कि सारे सृष्टि का मालिक अकेला है यदि किसी स्कूल के दो प्रिंसपल हों तो स्कूल नहीं चल सकता, एक गाँव के दो प्रधान हों तो गाँव का प्रबंध नष्ट हो जाता है किसी एक देश के दो बादशाह नहीं हो सकते तो इतनी बड़ी सृष्टि (संसार) का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिकों द्वारा कैसे चल सकता है, और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते हैं?
धर्म केवल उपासना पद्धति और नाम जाप का ही नाम नहीं होता बल्कि वह मनुष्य को जीवन के हर पहलू में हर संकट में सही और सीधा मार्ग दिखाता है।
Saturday, 31 July 2010
Thursday, 22 July 2010
डा. अनवर जमाल साहब की छोटी बेटी (अनम ) का लम्बी के बीमारी के चलते इंतक़ाल हो गया ,इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन ।
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आज २२,जुलाई २०१०, सुबह ११ बजे के करीब हस्बे मामूल जब मैंने जमाल साहब से बात करने के लिए फ़ोन किया तो,फ़ोन किसी दूसरे के द्वारा रिसीव करने पर मुझे बताया गया कि हम जमाल साहब की बेटी को लेकर जा रहे हैं , तो मैंने पुछा कि क्या अनम को किसी डा. के पास लेकर जा रहे हो? उसकी तबियत कैसी है? तो मुझे बताया गया कि अनम का इंतक़ाल हो गया है और हम लोग इस वक़्त कब्रिस्तान में हैं, आप एक घंटे बाद फोन करिएगा, सुन कर बहुत अफ़सोस हुआ, उसके बाद दोपहर २.३० बजे डा.जमाल साहब से तफ़सील से बात हुई, तो उन्होंने बताया कि अनम ने रात १ बजे दूध पिया फिर ४ बजे भी दूध पिया तब तक वो हस्बे मामूल थी, सुबह सब लोग अपने काम में मसरूफ हो गए, ७.३ बजे जब उसको उठाने के लिए हाथ में लिया तो बच्ची ख़त्म हो चुकी थी, उन्होंने बताया कि उसके बदन कि ठंडक से लग रहा था कि को ख़त्म हुए २ घंटे से ज्यादा हो चुके हैं, इस दुःख कि घड़ी में हम सब उनके साथ हैं, अल्लाह उनको और उनके घर वालों को सब्र अता फरमाए, आमीन.......
आज २२,जुलाई २०१०, सुबह ११ बजे के करीब हस्बे मामूल जब मैंने जमाल साहब से बात करने के लिए फ़ोन किया तो,फ़ोन किसी दूसरे के द्वारा रिसीव करने पर मुझे बताया गया कि हम जमाल साहब की बेटी को लेकर जा रहे हैं , तो मैंने पुछा कि क्या अनम को किसी डा. के पास लेकर जा रहे हो? उसकी तबियत कैसी है? तो मुझे बताया गया कि अनम का इंतक़ाल हो गया है और हम लोग इस वक़्त कब्रिस्तान में हैं, आप एक घंटे बाद फोन करिएगा, सुन कर बहुत अफ़सोस हुआ, उसके बाद दोपहर २.३० बजे डा.जमाल साहब से तफ़सील से बात हुई, तो उन्होंने बताया कि अनम ने रात १ बजे दूध पिया फिर ४ बजे भी दूध पिया तब तक वो हस्बे मामूल थी, सुबह सब लोग अपने काम में मसरूफ हो गए, ७.३ बजे जब उसको उठाने के लिए हाथ में लिया तो बच्ची ख़त्म हो चुकी थी, उन्होंने बताया कि उसके बदन कि ठंडक से लग रहा था कि को ख़त्म हुए २ घंटे से ज्यादा हो चुके हैं, इस दुःख कि घड़ी में हम सब उनके साथ हैं, अल्लाह उनको और उनके घर वालों को सब्र अता फरमाए, आमीन.......
‘हम‘ ज़रूर आज़मायेंगे तुमको ख़ौफ़ और भूख से और कुछ माल और जान के नुक्सान से और फलों की पैदावार के घाटे में भी , ऐसे मौक़े पर सब्र करने वाले को खुशख़बरी सुना दो। -अलबक़रह, 155
क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में बस यूं ही चले जाओगे जबकि तुम पर अभी वह हालात नहीं आये जो तुमसे पहले लोगों पर आ चुके थे उन्हें सख्त तंगदस्ती का सामना पड़ा और बड़े बड़े नुक्सान और तकलीफ़ें उठानी पड़ीं और उन्हें खंगाल कर ऐसा हिला डाला गया कि वक्त के रसूल और उनके ईमान वाले साथी पुकार उठे कि अल्लाह की मदद कब आयेगी ? जान लो कि बेशक अल्लाह की मदद अब क़रीब है। -अलबक़रह, 214
‘हम‘ ज़रूर आज़मायेंगे तुमको ख़ौफ़ और भूख से और कुछ माल और जान के नुक्सान से और फलों की पैदावार के घाटे में भी , ऐसे मौक़े पर सब्र करने वाले को खुशख़बरी सुना दो। -अलबक़रह, 155
अनुवाद : मौलाना अब्दुल करीम पारीख साहब रह.
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दुनिया की ज़िन्दगी में इनसान को मुख्तलिफ़ हालात पेश आते हैं। मोमिन जानता है कि यह ज़िन्दगी तरबियत और इम्तेहान का मरहला है। वह बेहतर अंजाम के लिये नेक रास्ते पर डटा रहता है। क़दम क़दम पर उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वह सब्र के साथ नेकी के लिये, लोगों की भलाई के लिये त्याग करता है, अपना जान माल और वक्त खर्च करता है। किसी भी मुश्किल में न तो वह मालिक की तय की गई सीमा से बाहर निकलता है और न ही अपने मालिक से शिकवा ही करता है। वह अपने मालिक से अपनी बेहतरी के लिये दुआ और फ़रियाद ज़रूर करता है लेकिन वह किसी भी हालत के लिये मालिक से आग्रह नहीं करता कि यह काम ऐसे ही हो या इतने समय में ज़रूर हो। बन्दगी नाम है बिना शर्त पूरे समर्पण का। किस दुआ को कब और कैसे पूरा करना है, बन्दे से ज्यादा इसे मालिक बेहतर जानता है।
नेक बन्दों पर आने वाले मुश्किल हालात उनकी आज़माइश हैं , उनके विकास और निखार का सामान हैं जबकि ज़ालिम और पापी लोगों पर पड़ने वाली मुसीबतें ही नहीं बल्कि उन्हें मिलने वाली राहतें तक मालिक की यातना होती हैं। लोग मुसीबतों को तो यातना के रूप में जान लेते हैं लेकिन राहतों की शक्ल में भी सज़ा दी जा सकती है इसे हरेक नहीं जान सकता सिवाय ‘आरिफ़ बन्दों‘ के , जिन्हें तत्वदृष्टि प्राप्त है। इसी बोध के कारण ‘आरिफ़ मोमिन‘ मुसीबतों में भी विचलित नहीं होते, उनके दिलों को क़रार रहता है जबकि ज़ालिम पापियों के दिल राहतों में भी बेचैन और बेक़रार रहते हैं।
इससे बड़ी सज़ा किसी इनसान के लिये क्या हो सकती है कि वह अपने जन्म का मूल उद्देश्य पूरा करने से ही वंचित रह जाये ? और उससे उसका मालिक नाराज़ हो ?
और सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि इनसान अपने जन्म का मक़सद पूरा कर ले और उससे उसका मालिक राज़ी हो जाये। यह कामयाबी सिर्फ़ मोमिन को ही नसीब होती है। जिसे न तो अपने मालिक पर यक़ीन है और न ही वह उसके बताये रास्ते पर क़दम आगे बढ़ाता है, उसे कामयाबी कैसे नसीब हो सकती है?
पहले के लोगों को भी इम्तेहान से गुज़रना पड़ा है। हर ज़माने में यह नियम लागू रहा है और आज भी है। पालनहार की मुहब्बत इस इम्तेहान को आसान बना देती है। और मुहब्बत तो चीज़ ही ऐसी है कि हरेक दर्द और तकलीफ़ का अहसास लज़्ज़त में बदल जाता है।
डा. अनवर जमाल से साभार
‘हम‘ ज़रूर आज़मायेंगे तुमको ख़ौफ़ और भूख से और कुछ माल और जान के नुक्सान से और फलों की पैदावार के घाटे में भी , ऐसे मौक़े पर सब्र करने वाले को खुशख़बरी सुना दो। -अलबक़रह, 155
अनुवाद : मौलाना अब्दुल करीम पारीख साहब रह.
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दुनिया की ज़िन्दगी में इनसान को मुख्तलिफ़ हालात पेश आते हैं। मोमिन जानता है कि यह ज़िन्दगी तरबियत और इम्तेहान का मरहला है। वह बेहतर अंजाम के लिये नेक रास्ते पर डटा रहता है। क़दम क़दम पर उसे मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और वह सब्र के साथ नेकी के लिये, लोगों की भलाई के लिये त्याग करता है, अपना जान माल और वक्त खर्च करता है। किसी भी मुश्किल में न तो वह मालिक की तय की गई सीमा से बाहर निकलता है और न ही अपने मालिक से शिकवा ही करता है। वह अपने मालिक से अपनी बेहतरी के लिये दुआ और फ़रियाद ज़रूर करता है लेकिन वह किसी भी हालत के लिये मालिक से आग्रह नहीं करता कि यह काम ऐसे ही हो या इतने समय में ज़रूर हो। बन्दगी नाम है बिना शर्त पूरे समर्पण का। किस दुआ को कब और कैसे पूरा करना है, बन्दे से ज्यादा इसे मालिक बेहतर जानता है।
नेक बन्दों पर आने वाले मुश्किल हालात उनकी आज़माइश हैं , उनके विकास और निखार का सामान हैं जबकि ज़ालिम और पापी लोगों पर पड़ने वाली मुसीबतें ही नहीं बल्कि उन्हें मिलने वाली राहतें तक मालिक की यातना होती हैं। लोग मुसीबतों को तो यातना के रूप में जान लेते हैं लेकिन राहतों की शक्ल में भी सज़ा दी जा सकती है इसे हरेक नहीं जान सकता सिवाय ‘आरिफ़ बन्दों‘ के , जिन्हें तत्वदृष्टि प्राप्त है। इसी बोध के कारण ‘आरिफ़ मोमिन‘ मुसीबतों में भी विचलित नहीं होते, उनके दिलों को क़रार रहता है जबकि ज़ालिम पापियों के दिल राहतों में भी बेचैन और बेक़रार रहते हैं।
इससे बड़ी सज़ा किसी इनसान के लिये क्या हो सकती है कि वह अपने जन्म का मूल उद्देश्य पूरा करने से ही वंचित रह जाये ? और उससे उसका मालिक नाराज़ हो ?
और सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि इनसान अपने जन्म का मक़सद पूरा कर ले और उससे उसका मालिक राज़ी हो जाये। यह कामयाबी सिर्फ़ मोमिन को ही नसीब होती है। जिसे न तो अपने मालिक पर यक़ीन है और न ही वह उसके बताये रास्ते पर क़दम आगे बढ़ाता है, उसे कामयाबी कैसे नसीब हो सकती है?
पहले के लोगों को भी इम्तेहान से गुज़रना पड़ा है। हर ज़माने में यह नियम लागू रहा है और आज भी है। पालनहार की मुहब्बत इस इम्तेहान को आसान बना देती है। और मुहब्बत तो चीज़ ही ऐसी है कि हरेक दर्द और तकलीफ़ का अहसास लज़्ज़त में बदल जाता है।
डा. अनवर जमाल से साभार
Monday, 19 July 2010
रोज़े में झूट और 'फहश '
अबू हुरैरा रज़िअल्लहु अन्हु से रिवायत है
कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
कि जो शख्स रोज़ा रख कर ‘झूट'
बोलना और ‘फहश अमल करना तर्क न करे
तो अल्लाह को इस बात की कोई हाजत नहीं
के वह खाना पीना छोड़ दे.
(सही बुखारी)
कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया
कि जो शख्स रोज़ा रख कर ‘झूट'
बोलना और ‘फहश अमल करना तर्क न करे
तो अल्लाह को इस बात की कोई हाजत नहीं
के वह खाना पीना छोड़ दे.
(सही बुखारी)
खावंद की इजाज़त
अबू हुरैरा रज़िअल्लहु अन्हु से रिवायत है
कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
कोई औरत अपने खावंद (Husband)
की इजाज़त के बगैर (Nafli)
रोजाह नहीं रख सकती
(सहीह बुखारी, H# 5192;
सहीह मुस्लिम,H# 1026)
कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया:
कोई औरत अपने खावंद (Husband)
की इजाज़त के बगैर (Nafli)
रोजाह नहीं रख सकती
(सहीह बुखारी, H# 5192;
सहीह मुस्लिम,H# 1026)
Admi Ke Bura Honey Ke Lye
Abu Huraira Raziallahu Anhu Se Rivayat Hai
K Rasulullah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Fermaya:
Admi Ke Bura Honey Ke Lye
Yahi Kafi Hai
Ke Woh Apney Musalman Bhai Ko Haqeer Samjhey
(Sahih Muslim, Kitabul Ber, H# 2523:2524)
K Rasulullah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Fermaya:
Admi Ke Bura Honey Ke Lye
Yahi Kafi Hai
Ke Woh Apney Musalman Bhai Ko Haqeer Samjhey
(Sahih Muslim, Kitabul Ber, H# 2523:2524)
Jumma Ke Din Jab Imam Khutba De
Jabir Raziallahu Anhu Se Rivayat Hai
K Rasulullah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Fermaya,
Jumma Ke Din Jab Imam Khutba De
Raha Ho Aur Tum Main Se Koi Aae
To Isko Chaehai Ke 2 Rak’at Mukhtasar Perh Ley.
(Sahih Muslim, Kitabul Jumma, Page 287, H #
2024)
Azaab-E-Qabar Ke Awaazain Suna Dey
Anas Raziallahu Anhu Se Rivayat Hai
K Rasulullah Sallallahu Alaihi Wasallam Ne Fermaya:
Ager Mujhey Ye Khadsha Na Hota Ke Tum
Apney ‘Murdey’ Dafan Kerna Chor Do Gey
To Main ALLAH Se Du’a Kerta Ke
Woh Tumhain Azaab-E-Qabar Ke Awaazain Suna Dey.
(Sahih
Muslim, Kitabul Jannah)
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