इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है कि इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला, पैदा करने वाला, और उसका प्रबन्ध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है। वह अपने अस्तित्व (ज़ात) और गुणों मे अकेला है। संसार को बनाने, चलाने, मारने, जिलाने मे उसका कोई साझी नहीं। वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है, हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है। समस्त संसार में एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता। हर मनुष्य की आत्मा की आत्मा इसकी गवाही देती है चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो और चाहे मुर्ति पूजा करता हो मगर अन्दर से वह यह विश्वास रखता है कि पालनहार, रब और असली मालिक केवल वही एक है।
मनुष्य की बुद्धि में भी इसके अतिरिक्त कोई बात नहीं आती कि सारे सृष्टि का मालिक अकेला है यदि किसी स्कूल के दो प्रिंसपल हों तो स्कूल नहीं चल सकता, एक गाँव के दो प्रधान हों तो गाँव का प्रबंध नष्ट हो जाता है किसी एक देश के दो बादशाह नहीं हो सकते तो इतनी बड़ी सृष्टि (संसार) का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिकों द्वारा कैसे चल सकता है, और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते हैं?
3 comments:
ek dum sahi baat
हर मनुष्य की आत्मा की आत्मा इसकी गवाही देती है चाहे वह किसी भी धर्म का मानने वाला हो और चाहे मुर्ति पूजा करता हो मगर अन्दर से वह यह विश्वास रखता है कि पालनहार, रब और असली मालिक केवल वही एक है।
एक ही प्रदेश में अलग-अलग विभाग के लिये अलग-अलग मन्त्री होते हैं. है न !!
ठीक वैसे ही अलग-अलग शक्तियों के ईश्वर अलग-अलग हों यह संभव है.
वैसे मैं भी एकेश्वरवादी हूँ पर बहुदेववादियों का विरोधी नहीं हूँ.
फिर यह सब तो बस कल्पना है. वरुण देव, इंद्र देव, सूर्यदेव, चंद्रदेव हों या ब्रह्मा,विष्णु, महेश हों. सब अन्ततः मिलजुल कर एक सृष्टि ही बनाते हैं.
कहीं पर कोई विरोध और टकराव नहीं होना चाहिये.
सभी को उसकी समझ और विचारों की दिशा तय करने को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिये.
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