http://vedquran.blogspot.com/2010/08/about-namaz-on-road-anwer-jamal.html
- आप ने भी क्या खूब कहा है. बड़ी मस्जिद में जाकर नमाज़ पढने का मशवरा देकर समझ लिया की मसला हल हो गया लेकिन आप यह भूल गए की बड़ी मस्जिद की कैपेसिटी के मुताबिक ही लोग आयेंगे आप पहले पहुंचेंगे तो दूसरे बाद में आने वाले लोग रह जायेंगे लिहाज़ा कुछ ऐसे लोग ज़रूर बाकी रहेंगे जिनको अंदर जगह नहीं मिलेगी और उनको बाहर नमाज़ पढनी पड़ेगी. हमने अक्सर यह देखा है कि मस्जिद के बाहर नमाज़ पढने कि स्थिति में गैर मुस्लिम भाई पूरा सहयोग करते हैं और किसी को कोई शिकायत नहीं होती. इसी तरह से भगवती जागरण तो अक्सर पूरी सड़क बंद करके होता है और पूरी रात चलता है परन्तु मुस्लिम भाई कभी इसकी शिकायत नहीं करते. इस प्रकार के आयोजनों से परस्पर प्रेम पैदा होता है न कि नफरत.
- हमारे नगर में हिन्दुओं के मोहल्ले में स्थित मस्जिद में जुमे की नमाज़ में अक्सर बाहर नमाज़ पढ़ लेते हैं किसी को कोई ऐतराज़ नहीं होता. रमजान के महीने में रात को तरावीह पढने के समय में बिजली न होने पर अक्सर परेशानी होती थी तो वहां एक हिदू भाई ने अपने घर के जेनेराटर की सुविधा मस्जिद को उपलब्ध करा दी. हमारे पड़ोस में कुछ त्योहारों पर आधी सड़क घेर कर भंडारा लगाया जाता है जिसका किसी ने ऐतराज़ नहीं किया बल्कि उनको मुस्लिम भाइयों का पूरा सेयोग मिलता है. सामने चूंकि मस्जिद है इसलिए पूरी आवाज़ से होने वाली रेकोर्डिंग नमाज़ के वक़्त बंद कर दी जाती है. जब मैरिज होमों कस चलन नहीं था तब आधी सड़क घेर कर शामयाना लगा दिया जाता था और उसी में विवाह की पूरी रस्में और भोज आदि का आयोजन होता था लेकिन किसी को ऐतराज़ नहीं होता था. फ़िज़ूल की वाहवाही लूटने की खातिर आप ऐसे शागुफे न छोडें और हदीस का सहारा लेकर लोगों को न बहकाएं.
- शरीफ़ साहब आपकी "वेदकुरान" के लेख (Abut Namaz on Road ) पर दी गयी टिपण्णी से असहमत होकर लिख रहा हूँ, "हज़रत इब्ने उमर ( रज़ि० ) फ़रमाते हैं कि अल्लाह के रसूल ( सल्ल० ) ने 7 जगहों पर नमाज़ पढ़ने से मना फ़रमाया है। (1) नापाक जगह ( कूड़ा गाह ) (2) कमेला ( जानवरों को ज़िबह करने कि जगह ) (3) क़ब्रिस्तान (4) सड़क और आम रास्तों में (5) गुसल खाना (6) ऊंट के बाड़े में (7 ) बैतुल्लाह कि छत पर " ( तिर्मज़ी) इस हदीस में नमाज़ का ज़िक्र किया गया है ( जुमे की नमाज़ का भी) एक और हदीस है कि फैसले के दिन मोमिन के तराज़ू में जो अमल रखे जाएँगे, तो उनमें सबसे वज़नी अमल ( अखलाकी अमल ) होगा। सड़क या आम रास्ता रोक कर किसी भी तरह की इबादत करना कैसे अखलाकी अमल हो सकता है? हमारे देश में सड़कों तक दुकान लगाना, सड़क पर ठेला लगाना आदि-आदि को अतिक्रमण कहा जाता है और उनके ख़िलाफ़ अभियान चलाया जाता है, हालंकि वे लोग भी अपनी रोज़ी रोटी कमाने की खातिर करते हैं कोई गुनाह नहीं करते फिर भी उनके इस कार्य से आम आदमी के मानवाधिकार का हनन होता है, और मानवाधिकार की बुनियाद इस्लाम है, इससे यह साबित होता है की सड़क रोक कर नमाज़ पढ़ना चाहे एक बार हो या अनेक बार अखलाक़ी अमल नहीं हो सकता। और इस्लाम का प्रचार करना कोई वाहवही लूटना नहीं होता। हमारे लिए कुरआन और हदीस की दलील हुज्जत है, किसी आदमी का निजी विचार या अमल नहीं। अपने विचार के हक में कुरआन और हदीस से दलील देना आपकी दिनी ज़िम्मेदारी है। यहाँ मेरा मक़सद आपके दिल को किसी तरह की ठेस पहुँचाना नहीं है। आप मेरे बुज़ुर्ग हैं आपका एहतराम करना मेरा फ़र्ज़ है ।
2 comments:
एजाज़ भाई आपने बिलकुल सही कहा है.
Sahi kaha aapne. Temple, Santabanta & hackster profile
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